अमरूद की खेती | Guava cultivation in hindi

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अमरूद की खेती भारत में सामान्यतः सभी प्रदेशों में बागवानी की जाती है। आज के समय में अमरूद के बढ़ते हुए मांग को देखते हुए इसकी खेती पर जोर देना बहुत ही लाभप्रद होगा। बढ़ती हुई डायबिटीज के मरीज को अमरूद, पपीता, नाशपाती खाने को सलाह दी जाती है। इस समय अच्छी प्रजाति के अमरुद को बहुत ही अच्छे कीमत में बिक्री होता है।

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अमरूद की खेती के लिए भूमि का चयन

इसकी खेती लगभग प्रत्येक प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। अच्छे उत्पादन हेतु बलुई दोमट मिट्टी अच्छी होती है। उकठा रोग क्षारीय भूमि में लक्षण नजर आता है। 0.35 प्रतिशत इलाहाबादी सफेदा में खारापन सहन करने की क्षमता रहता है।

अमरूद की प्रजातियां

अमरूद की प्रमुख बागवानी के लिए इस प्रकार उपयुक्त है जो इस प्रकार है : इलाहाबादी सफेदा, सरदार लखनऊ-49, सेबनुमा अमरूद, इलाहाबादी सुरखा, बेहट कोकोनट आदि किस में है।

सरदार (लखनऊ-49)

इस प्रजाति के पौधे में 400 से 500 फल प्रति पौधा देता है। इस जाति के पौधे ग्वावा विल्ट के लिए सही होते है। व्यवसाय की दृष्टि से यह है उत्तम प्रमाणित हो रहा है।

इलाहाबादी सफेदा

इसकी पैदावार 450 से 600 फलक प्रति पौधा देने का क्षमता होता है। यह किस में बागवानी हेतु उत्तम माना जाता है।

सेवनुमा अमरुद (एपिल कलर ग्वावा)

इसका रंग सिंदूरी खुरदुरा गुदा पीलापन लिए सफेद हल्की सुगंध और मीठा होता है, इसका औसतन पैदावार 150 से 200 फल प्रति पौधा, जड़ो की फसल में रंग आता है।

इलाहाबादी सुरखा

इस फल का गूदा पीलापन, रंग सिंदूरी खुरदुरा मीठा पान हल्की सुगंध औसतन पैदावार 200 से 400 फल प्रति पौधा से प्राप्त होता है।

बेहट कोकोनट

इस किस्म का अमरूद उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के बेहट स्थान से विकसित हुआ है। इसमें शाखाएं बहुत अधिक निकलती हैं। असफल अच्छी होती है। फल आकार में बड़े छिलका हरे रंग का होता है। खटासयुक्त मीठा गुदा सफेद होता है।

अमरुद के पौधे की रोपड़ विधि

अमरूद का पौधारोपण 6.0×6.0 मीटर की दूरी पर 60×60 ग 60 सेंटीमीटर के गड्ढे में 20 से 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद, 40 से 50 ग्राम फली डाल धूल ऊपरी मिट्टी में मिलाकर गड्ढे की मिट्टी में बैठा जाय। पिंडी के अनुसार गड्ढा खोदकर उसके बीच लगाकर चारों तरफ से मिट्टी को अच्छी तरह से दबाकर हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।

अमरूद के खेत की सिंचाई

शरद ऋतु में 15 दिन के अंतर पर छोटे पौधों की सिंचाई करनी चाहिए। तथा गर्मियों में 7 दिन के अंतर पर सिंचाई करना उचित रहता है।

पैदावार

अमरूद का पौधा 8 से 10 वर्ष में कुर्ता विकसित हो जाता है। पूर्ण विकसित पौधे से 400 से 600 कल तक प्राप्त हो जाते हैं इन फलों का वजन 125 से 150 किलोग्राम होता है।

अमरूद की खेती का रोग नियंत्रण

कीट नियंत्रण

मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में अमरूद के फसल में कीड़े व बीमारी का प्रकोप होता है। जिससे पौधे और फलों गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अमरूद के हेलो मैं फल छेदा के कीड़े एवं फल मक्खी आदि रोग से प्रभावित होता है।

फल छेदक-इसके रोकथाम के लिए फल बनाने के उपरांत 15 से 20 दिन के अंतर पर क्यूनलाफस 1.5 मिली प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर दो से तीन बार छिड़काव 15 दिन के अंतर पर करना चाहिए।

फल मक्खी-इसके उपचार के लिए प्रभावित फलों को तोड़ कर फेंक देना चाहिए। इसके लिए 2.0 मिलीग्राम मैंलाथियान प्रति लीटर पानी की दर से दो से तीन छिड़काव कर देना चाहिए। बरसात के मौसम में फल मक्खी लगती हैं।

रोग नियंत्रण

अमरूद के पौधों में उकठा जैसे रोग लग जाते हैं। इन पौधों में रोग का प्रकोप वर्षा ऋतु में ही अक्सर होता है इस बीमारी से निजात पाने के लिए रोकथाम करना बहुत ही जरूरी है जिससे हमारे उपज पर प्रभाव ना डाल सके।

उकठा रोग-रोगी पौधे को गड्ढे से निकालकर थिरम 3 ग्राम प्रति लीटर कवकनाशी से उपचारित कर देना चाहिए। पौधों के जड़ों के पास पानी इकट्ठा ना हो। सरदार किस्म में यह रोग नहीं लगता है।

नोट – quickview05.com इस✍️ आर्टिकल में आपको अमरूद की उत्तम बागवानी करने की सलाह एवं जानकारी दी गई है। इस लेख के उपरांत अधिक जानकारी के लिए अन्य वेबसाइट का प्रयोग कर सकते हैं। और अपने आर्थिक स्थिति को बेहतर से बेहतर करने का प्रयास करना चाहिए।


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