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रजनीगंधा की खेती कैसे करें | How to do Rajnigandha Farming: Full Detail

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    रजनीगंधा की खेती (Rajanigandha ) पुष्पों के लिए की जाती है। पुष्पा मोम जैसा सफेद रंग के होते हैं। इसमें बड़ी ही मनमोहक सुगंध होती है। इसके पुष्प का प्रयोग घर, मांगलिक कार्य, होटल कार्यालय बहुत सी स्थानों को सजाने के काम में आता है। इसके अलावा पुष्पों से सुगंधित तेल बनाए जाते हैं जो बहुत ही महंगा होता है।

    यह बहुत उपयोगी फूल है, जिसे व्यावसायिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। रजनीगंधा के डंठलयुक्त पुष्प गुलदस्ता बनाने तथा मेज, शादी पार्टी, होटल, कार्यालय आदि सजावट के काम में आता है। बिना डंठल पुष्प को माला, गजरा, लरी के प्रयोग में लाया जाता है।

    इनके पतली पत्तियां लंबी तथा भूमि की तरफ झुकी हुई धनुष के आकार की होती है। इसके स्पाइक 90 से 100 सेंटीमीटर लंबी होती हैं। प्रत्येक स्पाइक में 12 से 20 जोड़े फूल होते हैं। फूल कुप्पी आकार के होते है।

    मिट्टी एवं जलवायु

    रजनीगंधा की अच्छी फसल के लिए चुनाव इसे हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है, बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मिट्टी है। खेत में पूर्णतया प्रकाश मिलता हो, जल निकासी का उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए।

    रजनीगंधा खाद एवं उर्वरक

    इसकी खेती करने के लिए भूमि की तैयारी के समय 15 से 20 गाड़ी सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर क्षेत्र के हिसाब से भूमि में मिला देना चाहिए। यदि संभव हो तो सरसों की खली भी मिला देना चाहिए। इसके अतिरिक्त 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर कि दर से उर्वरको के माध्यम से दिया जाए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा कंद रोपड़ से पूर्व भूमि में मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन की बची मात्रा लगाने के बाद दो बार में टॉप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए।

    रजनीगंधा की खेती
    रजनीगंधा की खेती

    रजनीगंधा फूल की प्रजातियां

    रजनीगंधा पुष्प की अभी तक तीन प्रजातियां उपलब्ध है।

    इन सिंगल फूलों वाली, 2 सेंटीमीटर डबल फूलों वाली, डबल फूलों वाली उपरोक्त किस्मों में से अधिकतर सिंगल एवं डबल फूलों वाली किस्मे अधिक प्रचलित है।

    कंद (कलम) की रोपाई

    इनके कंदो को अंतिम फरवरी से 15 अप्रैल तक लगाया जा सकता है। इसके अच्छे समय मार्च का महीना होता है। कंधों को 30 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर बनाई गई कतारों के बाद 60 सेंटीमीटर स्थान चौथी और पांचवी कतार के बीच छोड़ देना चाहिए ताकि फूलों को तोड़ने में कठिनाई ना आए। कंदो की गहराई उनके आकार पर निर्भर करती हैं। जितने बड़े कंद होंगे उतनी ही अधिक गहराई पर उनका रोपण किया जाएगा। यह गहराई 3 से 6 सेंटीमीटर हो सकता है। रोपड़ के लिए ए सेकंड जिनका आकार 2.5 से 3.5 सेंटीमीटर होता है। अधिक उपयुक्त होते हैं। तथा इनको 6 सेंटीमीटर गहराई पर लगाना चाहिए। यार ध्यान देना चाहिए की कंदो की रोपाई के समय जमीन में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। अन्यथा प्ले वादे कर जमीन की तैयारी करनी चाहिए। एक हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 1200 से 1500 किलोग्राम कंधों की आवश्यकताएं होती हैं।

    रजनीगंधा पौधों की सिंचाई

    रोपाई किए गए कंदो से जब तक उसके किल्ले ना अंकुरित हो जाए, तब तक सिंचाई नहीं करनी चाहिए। पहली सिंचाई कंद रोपड़ के दो से 3 सप्ताह के बाद करनी चाहिए। यह सिंचाई हल्की करनी चाहिए। अन्य सिंचाई मौसम की परिस्थितियों के अनुसार ध्यान में रखकर करना चाहिए। गर्मियों के मौसम में 10 से 12 दिन के अंतर पर तथा वर्षा ऋतु में आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिए।

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    रजनीगंधा फूलों की कटाई

    पुष्प रजनीगंधा की खेती के कंद रोपड़ से 80 से 100 दिन के उपरांत पुष्प ने प्रारंभ हो जाते हैं। और यह जड़े तब तक आते रहते हैं। इनके पुष्पों वाली डालियों को काटकर सौ – सौ के बंडल बनाकर बाजार में बिक्री के लिए भेज देना चाहिए।

    कीट एवं बीमारियां

    रजनीगंधा में कीट एवं बीमारियों का प्रकोप कम होता है। इनके कंदो को रोपड़ से पहले 0.25 प्रतिशत केपटन के घोल में डुबोकर पौधारोपण करना चाहिए। खड़ी फसल में पानी कभी नहीं भरना चाहिए। बल्कि हल्की फुलकी सिंचाई कर देना चाहिए। ज्यादा पानी से पौधों में विपरीत असर पड़ जाता है। तथा बीमारियां पनपने का डर रहता है।

    रजनीगंधा में माहू का प्रकोप कभी-कभी होता है। इनके पौधों पर 0.25 प्रतिशत मैलाथियान का घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए।

    उत्पादन

    पहले वर्ष में फूलों का पैदावार 150 से 200 कुंतल होती है। दूसरे वर्ष में 200 से 250 क्विंटल होती है। इसके बाद रजनीगंधा के फूल का पैदावार घट जाता है। इसलिए तीसरे वर्ष फसल को बदल देना चाहिए।

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