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आलू की फसल सुरक्षा एवं रोग नियंत्रण Potato Disease

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झुलसा रोग

झुलसा रोग पर नियंत्रण

आलू की खेती करने वाले किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान झुलसा रोग से उठाना पड़ता है। समय समय से किसानों को अपने फसल के ऊपर निगरानी करनी चाहिए, झुलसा रोग पौधों के पत्तियों डंठल और कंदो पर लगता है इस बीमारी का लक्षण पत्तियों पर छोटे हल्के पीले आगे बढ़कर गीले दिखने वाले धब्बे बाद में पत्तियों के निचले भाग पर धब्बों के चारों और सफेद फफूंदी आ जाती है।इस रोग से निपटने के लिए वैज्ञानिक शोध के द्वारा दवाइयां उपलब्ध है जिससे रोग से फसल को बचाया जा सकता है। तो चलिए अब रोग नियंत्रण के बारे में भी जानते हैं।

रोग पर नियंत्रण

  • कुछ इस तरह के बीज बुवाई करें जैसे कुफरी सतलुज, कुफरी आनंद, कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी बादशाह, तथा कुफरी सिंदूरी जैसी प्रतिरोधी किस्म के बीज लाएं।
  • आलू के बीज रोग ग्रसित कंदो को भंडारण एवं फसल की बुवाई से पूर्व छट कर अलग करके खाद्य वाले गड्ढे में दबा दें।
  • आलू बीज की बुवाई 4 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से ट्राइकोडरमा द्वारा शोधित करके बोना चाहिए।
  • आलू के बीमारी के अनुकूल मौसम होने पर सिंचाई बंद कर दें तथा 75% पत्तिया नष्ट हो पर डालों को काटकर खेत से बाहर गड्ढे में दबा दें।
  • जिंक मैगजीन कार्बोमेट 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, अथवा आलू फसल के बीमारी के लक्षण दिखाई देने से पूर्व मैकोजेब 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें। तत्पश्चात 8 से 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहें। झुलसा का भयंकर प्रकोप होने पर मेटैलेक्सिल इधर दवाओं के .25 % गोल का 1 -2 छिड़काव करें।

कामन स्कैब

इस रोग में कंद भद्दे हो जाते हैं। पैदावार में कमी नहीं आती बाजार में इस उपज का अच्छा दाम नहीं मिल पाता है। इस रोग से कंदो के छिलके छोटे- छोटे धब्बे भूरे रंग या लाल रंग के बन जाते हैं जो धीरे-धीरे बढ़ कर बड़े गोलाकार या अनियमित चकत्ते बन जाते हैं।

रोग पर नियंत्रण

  • आलू बुवाई से पहले 3% आर्गननोमरक्यूरीयल यौगिक के 0.2% घोल में 3% बोरिक एसिड के घोल में 30 मिनट तक उपचारित करें। कंदो को छाया मे सुखाएं उसके बाद बुवाई करें।
  • खेत में नमी बनाए रखने के लिए रखने के लिए हल्की तथा नियमित सिंचाई करते रहें।
  • आलू मैदानी भागों में ग्रीष्मकालीन जुताई करें तथा मटर गेहूं जौ चरी बाजरा हरी खाद अपने फसल चक्र में अपनाएं।

कीटो पर नियंत्रण

माहू या चैंपा रोग

माहू रोग नियंत्रण

एफिड आलू को नुकसान नहीं पहुंचा पाता।

रोग पर नियंत्रण

आलू की फसल में माहू रोग रहित बीज का इस्तेमाल करना चाहिए पश्चिमोत्तर मैदानी भाग में 15 अक्टूबर आलू की बुवाई तथा पूर्ववर्ती उत्तर प्रदेश के मैदानी भागों में 25 अक्टूबर तक बुवाई करना चाहिए।

  • आलू की पत्तियों पर माहू की संख्या 20 से ज्यादा होने लगे तब आलू के डंठल की कटाई कर देनी चाहिए।
  • अगर कीट ज्यादा क्षति पहुंचा रहे हैं तो कीटनाशक का दवा छिड़काव कर देना चाहिए।

पढ़ें आलू की खेती कैसे करें (पूरी जानकारी)

पात फुदका

यह रोग हरा तथा गहरे भूरे रंग का कीड़ा है इसका शरीर पतले शंकु के तरह होता है। यह पत्तियों का रस चूसते है। इसका प्रकोप अगेती फसल पर अधिक देखने को मिलता है।

रोक का नियंत्रण

मोनोक्रोटाफास 40 ई.सी.की 1.2 लीटर मात्रा या मिथाइल ऑक्सी डेमेटन 25 ई.सी की 1 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी मैं घोल का छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार दोबारा भी कर सकते हैं।

फफूद जनित रोग

अगेती/ पछेती झुलसा रोग

यह रोग पत्तियों को काले रंग के धब्बे बनाते हैं जिस का प्रकोप सारे पौधे झुलस जाते हैं।

रोकथाम के उपाय कैसे करें

मशीन के सहायता से जिनेब 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

विषाणु जनित रोग

यह रोग पत्तियों पर हरे पीले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं पत्तियां छोटी होकर सिकुड़ जाती है

रोकथाम के उपाय

  • जिस पौधे में रोग लगा हो उसे उखाड़ कर नष्ट कर दें
  • दूसरा उपचार डाईमेथोएट 30% ई.सी. 1 लीटर हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए

खुदाई

आलू के अगेती फसल से अधिक कीमत प्राप्त करने के लिए बुवाई 60 से 70 दिन के उपरांत खुदाई की जा सकती है

पैदावार

आलू की अगेती फसल जल्दी तैयार होने होने वाली का पैदावार कम होता है तो अधिक कीमत में भी बिकता है। शंकर किस्मत से अधिक पैदावार 600 से 800 कुंतल प्रति हेक्टेय प्राप्त होता है।


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