केले की वैज्ञानिक खेती || Banana Farming in Hindi

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Banana Farming in Hindi- भारतवर्ष में केला प्राचीन काल से स्वादिष्ट विटामिन युक्त एवं लोकप्रिय फल है। क्या आप Banana Cultivation के बारे में जानते हैं ? इस आर्टिकल में केला की खेती की जानकारी दी गई है। खेती करने के उपरांत यह लेख यह लेख उपयोगी साबित हो सकता है।

फलों में केला, आम के बाद भारत देश में दूसरा स्थान केले का है। । केला स्वास्थ्य के लिए कार्बोहाइड्रेट्स एवं विटामिन पोशाक तत्वों उच्च स्रोत है। केले के सेवन से हमारे शरीर को बहुत सारी विटामिन की आवश्यकताओं को पूरी करता है। भारत में केला का उत्पादन प्रथम स्थान है और फलों में तीसरे नंबर पर स्थान रहा है।

महाराष्ट्र में केले का उत्पादन सबसे प्रथम नंबर पर उसके बाद गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु तथा असम राज्य में अच्छे पैदावार होते हैं। अपने देश में लगभग हर गांव में केले के पौधे पाए जाते हैं। केले की खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते है।

भूमि (Land for Banana Farming in Hindi)

भूमि चयन करने में सबसे पहले दोमट अथवा मटियार दोमट भूमि और जल निकासी का व्यवस्था हो इस तरह केले की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है।

केले की उन्नत किस्म की प्रजातियां: (Varities of Banana)

1. हरी छाल

इस प्रजाति बसराई डवार्फ से बड़े 200 से 250 सेंटीमीटर मोटे हरे धब्बे युक्त होते हैं। इसके घर भारी, फलियां बड़ी पकने पर गूदा मीठा एवं मुलायम होता है।

2. बसराई डवार्फ

इसके पौधे छोटे 150 से 175 सेंटीमीटर तना हरा एवं वजनदार इनके चार फलियां बड़े कुछ मुड़े हुए और पकने पर हल्की होती है। इसका फल स्वादिष्ट मीठा तथा कम टिकाऊ होता है। इस प्रजाति में चित्ति रोग से ज्यादा ग्रसित होता है।

3. अल्पान

इस नस्ल के पौधे 3 से 4 मीटर तथा हरे सफेद घर भारी लंबा कसा तथा फलिया मध्यम आकार पकने पर पीला एवं स्वादिष्ट खटास लिए हुए मीठा तथा टिकाऊ होता है।

4. मालभोग

इस प्रजाति का पौधा ऊंचा तने सफेद हरा, घर मध्यम तथा फलिया क्षेत्र आया हुआ मध्यम आकार का पकने पर सुनहरी स्वादिष्ट एवं मीठी तथा टिकाऊ होता है।

5. पुवन

यह प्रजाति दक्षिण भारत के सबसे लोकप्रिय फल है यह अधिक गर्मी वाली प्रजाति है. इनके फलिया पीले हल्का लालपन के साथ कड़े होते हैं। यह प्रजाति चिति रोग के लिए प्रतिरोधी तथा टिकाऊ किस्म के होते हैं।

6. मुन्यन

इनके फल मीठे तथा छोटे सीधे कोडीय होते हैं। इनके भंडारण क्षमता अधिक होती है। यह सब्जियों के लिए उपयुक्त किस्म के हैं।

7.रोबस्टा

इसके पौधे बड़े तथा तना मजबूत घार सुडोल फलिया लंबे हल्के पीले रंग के स्वादिष्ट होते हैं। यह चित्ती रोग से काम गर्सित होता है।

8.कोठिया

कोठिया प्रजाति के पौधे ऊंचे तना मजबूत घर सुडौल तथा फलियां लंबी मीठी कोनाकार पकने पर पीला, गूदा ढीला तथा स्टार्च युक्त होता है। पकने के उपरांत खाया जा सकता है। यह सब्जियों के लिए काफी उपयुक्त है।

केले का प्रबंधन एवं पौधारोपण

केले का प्रबंधन पतियों के द्वारा किया जाता है। इनके पुत्तिया तलवार नुमा जिनमें घन कंद पूर्णतया विकसित एवं गठीले हो, उन्हीं का प्रयोग किया जाता है। पौधों का रोपण 15 जून से 30 जून तक किया जाता है।

केले के पौधे की रोपाई के लिए 2 से 3 मीटर की दूरी पर 50 ×50×50 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे मई माह में खो दिए जाने चाहिए। 15 से 20 दिन तक खुला रखने के बाद 20 से 25 किलोग्राम सनी गोबर की खाद 50 क्लोरोपाइरीफास 3 मिली,+5 लीटर पानी तथा आवश्यकतानुसार ऊपर की मिट्टी के साथ अच्छी तरह से मिलाकर भर देना चाहिए। गड्ढे की सिंचाई करने के बाद पुत्तियो को पत्तियां काटकर 15 जून से 15 जुलाई तक रोपड़ का देना चाहिए।

पोषण

भूमि की उर्वरता के अनुसार प्रति पौधा को 300 ग्राम नाइट्रोजन, 300 ग्राम पोटाश, तथा 100 ग्राम फास्फोरस की आवश्यकता होती है। फास्फोरस की आधी मात्रा रोपाई के समय तथा शेष मात्रा रोपाई के बाद देनी चाहिए। नाइट्रोजन की पूरी मात्रा 5 भागों में विभाजित कर सितंबर, अक्टूबर तथा अप्रैल माह में देना चाहिए।

सिंचाई

केले के बाग में प्रचुर मात्रा में नमी बनी रहनी चाहि प्रोफाइल के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए। उसके बाद 7 से 10 दिन के बाद आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए।

अवरोध पर्त (मलचिंग)

केले के थाले में गन्ने की पत्ती एवं पुआल से सिंचाई की मात्रा आधी हो जाती है तथा पौधे की वृद्धि फलोत्पादन तथा गुणवत्ता में वृद्धि हो जाती है।

निराई, गुड़ाई- कटाई, छटाई व सहारा देना:

केले के रोपाई के दो माह के अंदर ही बगल से नई पुत्तिया निकल आती हैं। इन पुतलों को समय-समय पर काटते रहना चाहिए। रोपाई के 2 माह बाद 30 सेंटीमीटर व्यास का 25 सेंटीमीटर ऊंचा चबूतरा नुमा बना देना चाहिए। जिससे पौधों की आवश्यकतानुसार सहारा मिल जाता है।

केला पकाना एवं उपज

केले को पकाने के लिए घार को किसी बंद कमरे में रख कर केले के पत्तियों से ढक देना चाहिए। एक कोने में उपले अथवा अंगीठी जलाकर कमरे गीली मिट्टी से सील कर देते हैं। पी लगभग 48 से 72 घंटे में केला पक कर खाने योग्य हो जाता है। इस तरह केला पकने से चित्तिया पड़ जाती है। तथा उनमें मिठास अधिक हो जाती है। केले की ढेर पर 500 से पी.पी.एम एर्थिल का छिड़काव करके ढेर को बोरे से ढक देने से केला अच्छी तरह पता है। तथा रंग अच्छा विकसित होता है। प्रति हेक्यर 300 से 400 क्विंटल तक ऊपर से प्राप्त होते हैं।

कीट व रोग नियंत्रण for Banana Farming

केले का पत्ती बिटिल (बनाना बिटील)

इस रोग नियंत्रण के लिए मिथाइल – ओ डिमेटान 25 ई.सी. 125 मिली. 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

एंथ्रोकनोज

इस रोग से फलों के गुच्छे एवं डंठल काले हो जाते हैं। तथा बाद में सड़ने लगते हैं। इनके रोकथाम के लिए ताम्रयुक्त रसायन कॉपर ऑक्सिक्लोराइड का 0.3 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए।

केला जन्मा तना वीवील

इस रोग के नियंत्रण के लिए कार्वाफ्यूरन अथवा फोरेट या थीमेट 10-जी दानेदार कीटनाशी को प्रति पौधा 25 ग्राम प्रयोग करना चाहिए।


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