मौलिक अधिकार/ Fundamental Rights

(Fundamental Rights) मौलिक अधिकार वे अधिकार है जो एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए अनिवार्य है और जाति, रंग, धर्म, नस्ल, और, लिंग, का लिहाज किए बिना इनका उपयोग सभी के द्धारा किया जाता है।

  • समानता का अधिकार
  • धार्मिक अधिकार
  • संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार
  • संवैधानिक सहायता का अधिकार
  • सवतंत्रता का अधिकार

#समानता का अधिकार (14-18)

सामाजिक समानता किसी समाज की उस अवस्था को दर्शाता है, जिसमें उस समाज के सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के सामाजिक स्तर पर समान महत्व प्राप्त हो, चाहे वह किसी भी धर्म जाति या लिंग का ही क्यूँ न हो।
हमारे देश के संविधान में समानता के अधिकारों का स्थान बहुत ही प्रमुख स्थान है। भारतीय संविधान के तीसरे भाग में वर्णित है की मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) की सूचि में समानता के अधिकारों को भी स्थान दिया गया है, ये अधिकार अनुच्छेद 14 से लेकर अनुच्छेद 18 तक व्याप्त हैं, जिनमें देश के सभी नागरिक को सभी क्षेत्र में सामान अधिकार पाने का पूरा हक है।

#धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (25-28)

चूंकि भारत एक अनेक धर्मों वाला देश है, जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई एवं अनेक अन्य समुदाय एक साथ रहते हैं। संविधान भारत को एक ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य’ घोषित करता है। यह स्वतंत्रता संविधान द्वारा धर्म की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार(Fundamental Rights) (अनुच्छेद 25-28) के अंतर्गतत प्रदान की गई है। इसमे सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता एवं धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का समान अधिकार है।

⟫पढ़ें: संविधान की रूपरेखा ⟪

#संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार (29-30)

देश के सभी नागरिकों को संस्कृति व शिक्षा सम्बन्धी स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया हैं। नागरिकों के प्रत्येक वर्ग को अपनी भाषा, लिपि व संस्कृति को सुरक्षित रखने का पूरा अधिकार हैं। इस तरह राज्य द्वारा संचालित संस्थानों में प्रवेश के लिए जाति, वर्ग के आधार पर कोई विभेद नहीं किया जाएगा। धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।

#शोषण के विरुद्ध अधिकार (12-32)

समाज के कमजोर वर्गों की रक्षा के लिए, भारतीय नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 23 एवं अनुच्छेद 24 के माध्यम से शोषण के विरुद्ध अधिकार की प्रत्याभूति प्रदान की गई है। संविधान के अनुच्छेद 23 व 24 के द्वारा सभी नागरिकों को शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदान कर शोषण की सभी स्थितियों को समाप्त करने का प्रयास किया गया हैं। शोषण के विरुद्ध मौलिक अधिकार देश में एक नागरिक की रक्षा करता है तथा उसे सुरक्षित एवं संरक्षित महसूस कराता है। यह भारतीय समाज के असुरक्षित तथा कमजोर वर्ग के अधिकारों की रक्षा करता है।

⟫पढ़ें: राज्य की नीति- निर्देशक सिद्धान्त ⟪

#संवैधानिक सहायता का अधिकार (39)

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) का गठन विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अंतर्गत समाज के कमजोर वर्गों को नि:शुल्क कानूनी सेवाएं प्रदान करने के लिए और विवादों का सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए लोक अदालतों का आयोजन करने के लिए की गई है। जिन लोगों के पास न्यायालय जाकर अपनी कानूनी समस्या को रखने के लिए धन नहीं हो, उन्हें बिना पैसे लिए या बहुत कम पैसे में कानूनी सहायता करना विधिक सहायता कहलाता है। कानूनी सहायता देना, विधिक समता के लिए बहुत आवश्यक तत्त्व है क्योंकि निर्धनता के कारण कोई न्याय न प्राप्त कर पाए तो विधिक समता का कोई अर्थ नहीं है।

#सवतंत्रता का अधिकार (19-22)

स्वतंत्रता एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें लोगों को बाहरी प्रतिबंधों के बिना बोलने, करने और अपने सुख को प्राप्त करने का अवसर मिलता है, और कई लोगों को स्वतन्त्र होकर जीवन यापन करने में अच्छा लगता है, वे लोग किसी अन्य व्यक्ति से ज्यादा बोलना और न ही किसी से ज्यादा मतलब रखना पसंद करते हैं। स्वतंत्रता हमारे लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उससे हमें अपने नए विचार, रचनात्मक कला, उत्पादन और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने का मौका मिलता है।


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