अश्वगंधा की खेती- अश्वगंधा यह ऊर्ध्व प्रशाखा वाला पौधा है। यह 2 से 4 फीट तक ऊंचा होता है। इनके जड़ गूदेदार, शुण्डाकार, सफेद एवं भूरी होती है। पत्तियों के आकार अंडाकार छोटे एवं हल्के पीले हरे रंग की होती हैं। इनके फलों के अंदर बहुत सारे बीज होते है।
अश्वगंधा का वानस्पतिक नाम वीथानीयां सोमनीफेरा है। यह एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल के साथ नगदी फसल भी है। यह पौधे ठंडे प्रदेशों को छोड़कर सभी जगहों मैं पाए जाते है। इसकी खेती मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग नीमच, मंदसौर, मानसा, जावद, भानपुर तहसील में राजस्थान राज्य के नागौर जिले में होती है। नागौरी अश्वगंधा के बाजार में अलग ही पहचान है।
अश्वगंधा की खेती का फसल चक्र
अश्वगंधा खरीफ फसल के रूप में लगाई जा सकती है। तथा फसल चक्र में गेहूं की फसल की जाती है।
अश्वगंधा के प्रयोग अंग
जड़, पत्ता, फल, और बीज। जड़ों को सुखाकर आयुर्वेदिक एवं यूनानी दवाई बनाई जाती है। इनकी जड़ों से फेफड़ों का सूजन, त्वचा की बीमारियां, गठिया रोग जैसी बीमारियों में काम आता है।
पत्तियों का उपयोग-इनके पत्तियों से पेट के कीड़े मारने एवं हरी पत्तियों के लेप से घुटनों की सूजन घुटनों की सूजन तथा टी.बी.रोग के लाभप्रद होता है।
औषधीय गुण और उपयोग
अश्वगंधा शक्तिवर्धक, स्फूर्तिदायक, कामोत्तेजक होती है। यह महिलाओं के गर्भाशय को मजबूत करने में सहायक होता है। इससे स्मरणशक्ति की छति रूकती है। यह शारीरिक दुर्बलता अनैच्छिक वीर्यस्राव और यौन जनित कमजोरी में लाभदायक होता है। मूत्र वर्धक कृमि नाशक और हाइपोकलेस्टमारिक के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
मृदा और जलवायु
यह बालू दोमट या हल्की लाल मृदा जिसमें 7.5 से 8.0 विद्वान हो तथा समुचित जल निकासी की व्यवस्था उसमें उगाई जा सकती है। इसकी खेती 600 से 1200 मीटर ऊंचाई पर की जाती है।
नर्सरी और रोपाई
अश्वगंधा की फसल की बुवाई कतारों में बीज को छिटका कर किया जा सकता है। इनको पंक्ति दर पंक्ति की प्रणाली को अपनाई जा सकती है। क्योंकि इसकी जड़ का उत्पादन बढ़ता है। इसके बीज जून-जुलाई में 1 से 3 सेंटीमीटर गहराई में आमतौर पर बोए जाते हैं। बीज बुवाई के बाद मामूली से वर्षा से इसके अंकुरण का बेहतर होना सुनिश्चित पाया जाता है। प्रति हेक्टेयर भूमि में 500 से 700 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। बुवाई के 25 से 35 दिनों के बाद उन पौधों को खेतों में पति रोपित किया जाता है। जहां पंक्तियों में बीज 60×60 सेंटीमीटर के अंतराल पर बनाया गया हो। ध्यान देने की जरूरत है कि अश्वगंधा वर्षा ऋतु की फसल है। इसकी बुवाई का समय क्षेत्र विशेष में मानसून के आगमन पर से तय किया जाता है।
छटाई और निराई
बोए गये को बुवाई के 25 से 30 दिन के बाद छाठ देना चाहिए। इससे लगभग 30 से 60 पादप प्रति वर्ग मीटर लगभग 3.5 लाख 5 हेक्टेयर अनुरक्षित हो जाते हैं।
उपाज
अश्वगंधा 1 हेक्टेयर से 6.5 से 8 क्विंटल ताना जड़े प्राप्त होते हैं। जो सूखने के बाद 3 से 5 क्विंटल रह जाते हैं। 50 से 60 किलो बीज प्राप्त होता है।
सर्वोत्तम 5 सेंटीमीटर लंबी एवं 1 सेंटीमीटर व्यास वाली ठोस सफेद चमकदार एवं जड़ उत्तम मानी जाती है।
मध्यम 3 से 4 सेंटीमीटर लंबी 1 सेंटीमीटर व्यास वाली तथा ठोस संरचना वाली जड़े मध्यम श्रेणी में आती है।
निम्न उपरोक्त के अतिरिक्त बची हुई कटी फटी पत्नी छोटी और पीले रंग की जड़े निम्न श्रेणी में आती हैं।
खुदाई सुखाई और भंडारण
या फसल 135 से 150 दिन की माध्य में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जब पत्तियां व फल पीले हो जाएं तो फसल खुदाई के लिए तैयार होती हैं पूरे पौधे को जड़ सहित उखाड़ लेना चाहिए। जाड़े टूट या कट जाए तो उनके जड़ खोद लेना चाहिए बाद में जोड़ों को धूल लेते है, और धूप में सुखा लेना चाहिए।
भंडारण जड़ों को जूट के बोरे में भरकर हवादार जगह पर भंडारण करें। 1 वर्ष तक गुणवत्ता सहित भंडारण किया जा सकता है।