भिंडी की खेती ग्रीष्म तथा वर्षा काल दोनों ही ऋतुओं में सफलतापूर्वक उगाई जाती है। भिंडी की खेती करके किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं। भिंडी की सब्जी बनाई जाती है और बैगन की तरह मसाला भरकर कलौजी भी बनाते हैं। जिस का प्रचलन शादी विवाह समारोह में इसका भी मुख्य स्थान रहता है।
उन्नत किस्म के बीज
प्रजातियां | बुवाई का समय | अवधि दिनों में | उत्पादन कु./हे. | बीज की मात्रा |
पूसा सावनी | फरवरी-मार्च जून-जुलाई | 40 से 45 ग्रीष्म 60 से 65 वर्षा | 105 से 125 | 18 से 20 किग्रा./ हे 10 से 12 किग्रा./हे. |
वर्षा उपहार | तदैव | 40 वर्षा | 90 से 100 | तदैव |
परमानी क्रांति | तदैव | 40 से 45 | 85 से 90 ग्रीष्म | तदैव |
हिसार उन्नत | तदैव | 46 से 47 | 120 से 130 | तदैव |
पूसा ए 4 | तदैव | 100 से 120 | तदैव | |
आजाद क्रांति | तदैव | 120 से 125 | तदैव |
भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त जमीन एवं तैयारी
भिंडी की खेती को हर प्रकार की भूमि में फसल उगाया जा सकता है। भिंडी की फसल के लिए अच्छे जल निकासी की व्यवस्था हो दोमट मिट्टी सबसे अच्छी रहती है। खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से 20 से 25 सेंटीमीटर गहरी जुताई करके दो तीन बार देसी हल से जुताई करके मिट्टी भुरभुरी कर लेनी चाहिए। खेत को अच्छी तरह समतल बना ले ताकि सिंचाई करते समय कठिनाई ना पैदा हो।
भिंडी की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक
साधारणतया भूमि तैयार करते समय लगभग 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी हुई खाद खेत में मिलाई जाती है। सामान्य भूमि में उपज में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश हेक्टेयर की दर से डाल देते हैं।
बुवाई की विधि
भिंडी की बुवाई जायद में अच्छे जमाव होने की दृष्टि से 10 से 12 घंटे पहले बीच को पानी में भिगोने से अंकुरित होने में लाभप्रद होता है। सामान्यतः फरवरी में बीज जमाने में 10 से 12 दिन का समय लग जाता है। भिंडी की बुवाई 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में की जाती है। एक पौधे से दूसरे पौधे के अंतर 30 से 30 सेंटीमीटर रास्ते हैं। वर्षा ऋतु में 45 से 60 सेंटीमीटर तथा कतारों में पौधों का अंतर 30 सेंटीमीटर रखा जाता है।
सिंचाई
बुवाई के समय अगर खेत में नमी कम है तो पहले पलेवा करना आवश्यक है, ताकि बीज का जमाव अच्छे से हो सके। ग्रीष्मकालीन में फसल सत्ता में एक बार सिंचाई करने की आवश्यकता पड़ती है। देर से सिंचाई करने पर फल जल्दी सख्त हो जाते हैं। और पौधे और फल का बढ़वार कम हो जाता है। बरसात के मौसम में भी अगर काफी समय तक वर्षा ना हो तो आवश्यकता अनुसार सिंचाई को करते रहना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
भिंडी की खेती में मौसमी खरपतवार ओं की समस्या हो जाती है यह फसल को बहुत हानि पहुंचाते हैं। इसलिए खरपतवार को नष्ट करना बहुत ही आवश्यक होता है। भिंडी की खेती यदि बुवाई के बाद प्रथम 30 से 40 दिन तक खरपतवार रहित रह जाए तो इसके बाद खरपतवार फसल पर विशेष कुप्रभाव नहीं डाल पाते हैं। एलाक्लोर का 2.5 किलोग्राम सक्रिय अवयव तथा पेन्डीमिथलीन का एकदम अल्फाज किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सक्रिय अवयव का प्रयोग करना चाहिए।
रोग नियंत्रण
पीत शिरा मोजैक
यह एक वायरस से फैलने वाला सबसे व्यापक व हानिकारक रोग है। वर्षा ऋतु की फसल में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग ग्रस्त पौधे की पत्तियों की शिराएं चमकीली वहां पीली रंग की हो जाती हैं। पत्तियां कुछ दिन बाद पूरी पीली पड़ जाती हैं। नई पत्तियां जो निकलती हैं पीली छोटी तथा सिकुड़ कर मुड़ कर ऐठ जाती हैं।
नियंत्रण: जिस पौधे में रोग का लक्षण दिखाई देता हो उनको उखाड़ कर खेत से दूर फेंक देना चाहिए।
डाईमेंक्रान100 ई.सी.(1 मिलीलीटर 3 लीटर पानी में ) तथा नुवान 100 ई.सी. 1 मिलीलीटर 3 लीटर पानी में 1:1 के मिश्रण का छिड़काव फल आने से पूर्व 15 दिन के अंतर पर कर देना चाहिए।
भिंडी की खेती के लिए कीट नियंत्रण
जैसिड या हरा फुदका
यह हरे रंग के कीट होते हैं इनके पीठ के पिछले भाग पर काले धब्बे पाए जाते हैं। यह किट पत्तियों और नरम भागों के रस चूसते हैं। जिसके कारण पत्तियां मुड़ जाती हैं धीरे-धीरे पत्ते सूख जाते हैं।
नियंत्रण: मैलाथियांन कि 2 मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाए छिड़काव के 5 दिन बाद ही फल तोड़े जाएं।
तना एवं फल छेदक कीट के बारे में जानकारी
इस कीट की चूड़ी का रंग सफेद होता है जिसके ऊपर काले और भूरे रंग के धब्बे पाए जाते हैं इसलिए इसे चित्तीदार सूडी कहते हैं। तने एवं फलों में छेद करके नुकसान पहुंचाते हैं, जिसके फलस्वरूप तने एवं फल मुरझा कर गिर जाते हैं।
नियंत्रण: क्विनालफास/ क्लोरपायरीफास 0.05 प्रतिशत का 15 दिन के अंतराल पर या सेविन के 0.2 प्रतिशत घोल का 10 दिन के अंतर पर छिड़काव किया जा सकता है।
भिंडी की तुड़ाई
भिंडी की तुड़ाई करने के लिए फूल खिलने के 6 से 7 दिन बाद की जाती है। केवल उन्हीं फलों को तोड़ना चाहिए जिनके सिरे थोड़ा सा ही मोड़ने पर टूट जाए। साधारणतया हर 3 से 4 दिन के अंतराल पर फल की चौड़ाई योग्य तैयार हो जाते हैं।