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तुलसी के खेती कैसे करें | Tulsi ki kheti in hindi

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    Tulsi ki kheti– आज के समय में Tulsi Cultivation को धान गेहूं की फसल की तरह औषधीय फसलों की खेती कर रहे हैं। और अपने आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के साथ देश को औषधीय जड़ी बूटियों को प्रचुर मात्रा में उत्पादन कर देश का सेवा करने में भी बड़ा योगदान है।

    तुलसी का पौधा झाड़ीनुमा होता है, और पूरे वर्ष फलता है। इसकी ऊंचाई 30 से 60 सेंटीमीटर होती है। तने और शाखाएं काष्ठीय होती हैं। पत्तियां अंडाकार दोनों सिरों पर रोमिल किनारों पर चिकनी और लटावादार होती है। इसके फूल एक गुच्छों में लगते हैं।

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    प्रयोग अंग – संपूर्ण पौधा

    Tulsi ki kheti
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    औषधीय गुड़ एवं प्रयोग

    भारतीय समाज में तुलसी के पौधे को धार्मिक दृष्टि से इसका बहुत ही महत्व है। इसका वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है। और यह साल के 12 महीनों में से कार्तिक के महीने का विशेष महत्व है। इसके पत्ते तथा टहनियां का विभिन्न प्रकार की बीमारियों में औषधि के रूप में काम में लाया जाता है। अल्सर, तनाव, उच्च रक्तचाप, ट्यूमर, पेट के विकार आज में भी इसका प्रयोग किया जाता है। तुलसी का पौधा सुगंधित होता है बच्चों की पेचिश एवं खांसी के इलाज में बहुत ही लाभकारी उपयोगी होता है।

    भूमि एवं जलवायु

    तुलसी के पौधे को लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है बलुई दोमट मिट्टी क्षारीय मिट्टी अधिक उपयोगी मानी जाती हैं। इसके लिए जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होना जरूरी है। जल जमाव से इसके जड़े गलने लगते हैं और सुख जाते हैं। जिससे पैदावार कम हो जाती है।

    भूमि की तैयारी

    इसके कृषि के लिए भूमि को अच्छी तरह बारीक करके इसमें 15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर अच्छी तरह मिलाकर क्यारियां बना ली जाती हैं।

    नर्सरी एवं रोपड़

    इसकी नर्सरी फरवरी के तीसरे सप्ताह में तैयार की जा सकती है। और पौधों का नर्सरी से प्रत्यारोपण अप्रैल के मध्य में शुरू करना चाहिए। इसकी खेती बीजारोपण से भी की जाती है। 1 हेक्टेयर भूमि के रोपण के लिए लगभग 200 से 300 ग्राम बीज की पौधे बहुत होती है। बीज नर्सरी में 2 सेंटीमीटर मिट्टी के नीचे बोना चाहिए। प्रति हेक्टेयर अधिक उपज एवं तेल उत्पादन के लिए इसका प्रत्यारोपण 40×40 सेंटीमीटर से 40× 50 सेंटीमीटर की दूरी पर करना चाहिए।

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    खाद एवं उर्वरक

    इसके पैदावार के लिए कंपोस्ट /वर्मी कंपोस्ट एवं कार्बनिक खाद अच्छी रहती है।

    सिंचाई

    तुलसी की सिंचाई मिट्टी की नमी पर निर्भर करती है। गर्मियों में तीन सिंचाई प्रतिमाह जरूरी है। वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। पूरे वर्ष में 12 से 15 सिंचाई बहुत होती है।

    पैदावार

    तुलसी की पहली कटाई रोपाई के 90 से 95 दिन के बाद की जाती है। इसके बाद 65 से 75 दिन के अंतराल पर कटाई करनी चाहिए। तुलसी की पैदावार लगभग 5 टन प्रति हेक्टेयर बस में 3 बार ली जा सकती है।

    तुलसी के तेल की मांग

    इसका प्रयोग सबसे ज्यादा परफ्यूम तथा कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में इसका प्रयोग किया जाता है। जून-जुलाई का पौधा सर्दियों में तैयार हो जाता है। आज के समय में हर्बल औषधियों में इसका प्रयोग खूब हो रहा है। इसका मांग दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

    तुलसी के तेल की कीमत

    तुलसी का पौधा तैयार होने के बाद आसवन विधि से पौधे एवं पत्तियों से तेल निकाले जाते हैं। एक हेक्टेयर के पैदावार से 100 किलोग्राम तेल लगभग प्राप्त होते हैं। किसानों के अनुसार बताया जाता है, कि इस तेल की अनुमानित मूल्य 2000/प्रति लीटर की दर से बिक्री दर है। कोरोना काल में इसका मांग बहुत अधिक बड़ा था। यह मुनाफा देने वाली खेती है। इसका फसल 90 दिनों में तैयार हो जाता है।

    सुबह खाली पेट तुलसी के सेवन से फायदे

    तुलसी का पौधा धार्मिक दृष्टि से बहुत ही पवित्र माना जाता है। इसी के साथ साथ वैज्ञानिक दृष्टि से आयुर्वेद में इसका प्रमुख स्थान रहा है। बहुत सी बीमारियों से लड़ने का छत्ता प्रदान करता है। आयुर्वेद में तुलसी को औषधीय कौन सा माना जाता है। जो व्यक्ति को कई बीमारियों से बचाता है। तुलसी हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं।

    सुबह के समय खाली पेट तुलसी का पत्ता खाने से शरीर में छोटी बड़ी बीमारियों में सहायक होते हैं। औषधीय गुणों से भरा हुआ तुलसी आयुर्वेद में कई तरह से इस्तेमाल की जाती है। जो पेट से संबंधित समस्याओं जैसे पाचन मैं परेशानी पेट में जलन एसिडिटी की दिक्कत को दूर करने में मदद करता है।

    उसके के फ़ायेदे

    • इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए।
    • पाचन के लिए फायदेमंद।
    • सर्दी खांसी में बहुत उपयोगी होता है।
    • सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद है तुलसी का पत्ता।

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