भारत में लहसुन की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है। सम्पूर्ण भारत वर्ष में हर प्रांतों में उगाई जाती है। विश्व में भारत उत्पादन की दृष्टि से तीसरा स्थान है। इसका उपयोग मसालों के साथ औषधि के रूप में किया जाता है। इसके कंद में अनेक छोटे-छोटे कंद होते हैं।लहसुन की खेती|
किसानों के लिए लहसुन की खेती अक्टूबर का महीना उपयुक्त माना जाता है। इस फसल के लिए न अधिक गर्मी न अधिक ठंडी का मौसम हो। इस मौसम में कंद का निर्माण बेहतर होता है। लहसुन की खेती के लिए दोमट मिट्टी अच्छी होती है। लहसुन के विभिन्न किस्मों के बारे में जानकारियां प्राप्त करते हैं।
उन्नत किस्म के प्रजातियां
एग्री फाउंड व्हाईट
लहसुन की इस किस्म की फसल की अवधि 140 से 160 दिन में फसल तैयार हो जाता है। इसका पैदावार 130 से 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर कि दर से होता है।
यमुना सफेद (जी.50)
इस फसल की अवधि 165 से 170 दिन में फसल तैयार हो जाता है। इस प्रजाति की उपज 150 से 155 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार होता है।
यमुना सफेद (जी.282)
इस प्रजाति की अवधि 140 से 150 दिन में तैयार हो जाता है। इस फसल की उपज 175 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर कि दर से पैदावार होता है।
लहसुन की खेती के लिए भूमि एवं उसकी तैयारी
लहसुन की खेती के लिए दोमट मिट्टी पैदावार के लिए उपयुक्त है, बलुई दोमट से लेकर चिकनी मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा ज्यादा होने के साथ साथ जल निकासी की समुचित व्यवस्था अच्छी हो। खेत में नमी अच्छी होने से बीज का जमाव अच्छा होता है। दो से तीन जुताई करके खेत को अच्छी तरह से समतल एवं भुरभुरी बनाकर क्यारियों एवं नालियों में बांट देते हैं।
खाद एवं उर्वरक
लहसुन की खेती से अच्छा पैदावार लेने के लिए हमें निम्न बातों को ध्यान में रखते हुए खेती करेंगे तो हमें अधिक लाभ मिलेगा। खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद प्रचुर मात्रा में डालें और क्यारियों में अच्छी तरह मिला देते हैं लहसुन की रोपाई के 2 दिन पूर्व 200 किलोग्राम कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट या 100 किलोग्राम यूरिया, 300 किलोग्राम सुपर फास्फेट तथा 100 किलोग्राम म्यूरेट आप पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। लहसुन की रोपाई के 4 सप्ताह बाद 200 किलोग्राम कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट या 100 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में बुवाई के बाद मिला देना चाहिए।
बुवाई की विधि
लहसुन के कंदो में कई कलियां होती। एक एक कली को कंद के गाठ से अलग करके बुवाई की जाती है। लहसुन को सोते समय कतारों की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर तथा कतारों में कलियों की दूरी 7.5 से 10 सेंटीमीटर रखते हैं। लहसुन की बुवाई लगभग 5 से 6 सेंटीमीटर गहराई में करते हैं। बुवाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि कलियों का नुकीला भाग ऊपर हो। बुवाई के समय खेत में नमी होना बहुत ही आवश्यक है।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
लहसुन की जड़े कम गहराई तक जाती है। क्यारियों में तीन से चार बार उथली गुड़ाई करके खरपतवार को निकाल देते हैं। और समय समय से सिंचाई करते रहना चाहिए। जिस समय लहसुन में गांठ बन रही हो सिंचाई जल्दी जल्दी करना चाहिए। निराई गुड़ाई जितना ही बेहतर होगा। पैदावार उतना ही बेहतर होगा।कोई भी फसल हो उसका निगरानी खेत के चारों तरफ सुबह शाम टहल कर देखरेख करना चाहिए। ऐसा करने से खेत में जो भी कमी है वह मालूम पड़ जाता है।
फसल सुरक्षा
लहसुन के फसल के देखरेख करते रहे कोई भी दिक्कत पड़ता है तो कीटनाशक दवाई की दुकान एवं कृषि रक्षा इकाई पर संपर्क करें।
फसल को हानिकारक कीट से बचाने के लिए थ्रिप्स नामक कीट का प्रकोप होने पर मेलाथियान 1 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
लहसुन की खेती
खुदाई
लहसुन की खुदाई करने से पहले सिंचाई को बंद कर देना चाहिए। जिस समय पौधों की पत्तियां पीली पड़ कर सूखने लग जाए तब लहसुन की खुदाई करनी चाहिए।
सुखाई एवं भंडारण
लहसुन की खुदाई के बाद गाठो को 3 से 4 दिनों तक छाया में सुखा लेते हैं। उसके बाद 2 से 2.25 सेंटीमीटर छोड़कर पत्तियों को कंद से अलग कर लेते हैं लहसुन को अच्छी प्रकार छटाई करके बाजार या भंडारण में रखने से अधिकतम लाभ मिलता है। तथा भंडारण में हानि कम होती है। अच्छी प्रकार सुखाने के बाद हवादार घरों में रख सकते हैं। पत्तियों सहित गुच्छे बंडल बनाकर रख सकते हैं। लहसुन की खेती